Thursday, March 27

व्यर्थ


व्यर्थ जगत,
व्यर्थ जीवन ,
व्यर्थ मेरी आत्मा |

व्यर्थ है सब िमथ्या,
व्यर्थ है सब सत्य |
व्यर्थ है ये नभ,
व्यर्थ ही आिदत्य ||
व्यर्थ सारा ज्ञान है ,
व्यर्थ ही अिभमान है |||
व्यर्थ थी ये मोह-माया ,
व्यर्थता अब भी िवध्य्मान है ||||

व्यर्थ जगत ,
व्यर्थ जीवन,
व्यर्थ मेरी आत्मा |

व्यर्थ मेरा आज है,
व्यर्थ मेरा कल होगा |
व्यर्थ मेरी राख है ,
व्यर्थ मेरा जल होगा ||
व्यर्थ सी मेरी िनशा है ,
व्यर्थ सा मेरा िदवस |||
व्यर्थ मेरा प्रेम है ,
व्यर्थ ही मेरी हवस ||||

व्यर्थ जगत ,
व्यर्थ जीवन,
व्यर्थ मेरी आत्मा |

व्यर्थता के गिलयारों में भटकता है
एक व्यर्थ व्यक्ित ,
व्यर्थता के सपनो में स्व-खोज करता
एक व्यर्थ व्यक्ित |
व्यर्थता की गहराइयो में गुम
व्यर्थ सी अिभव्यक्ित ,
व्यर्थ है , व्यर्थ रहेगी सदा
व्यर्थता की प्रकृित ||

2 comments:

AK said...

wah mast...
kya khoob likha hai ..
bahut dino baad padhi aisi..bakchodi..
sahi ahi ...ek do aur likhna...

Unknown said...

Ab tera kya hoga rey Kaaliyaa? XD

Good post.