Thursday, August 7

खामोशी


शहर की परित्यक्त सूनी गली
जो जाती है उस मंदिर तक
उस मोड़ पे खड़े पुराने बरगद के पेड़ से होके,

देखता हूँ तने में बने उस घोंसले को
और घोंसले में बैठे उस पक्षी को
जो हर रात करता है चाँद का इन्तेजार,

काश! मैं भी एक पक्षी होता
और बता पाता उसे की
आज अमावस्या है|


सोचता हूँ सन्नाटा ना होता ये गली कैसी होती
देखता हूँ एक सुवर्ण नारी
और सुनता हूँ उसकी पायल की झंकार,

काश! मैं भी पायल होता
समझ पाता गली की व्यथा
और कह पाता

" इस गली की खामोशी ना तोड़ो "

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